आप रुठे हो माज़रा क्या है,
कुछ कहो तो भला हुआ क्या है।
मेरा जीवन मेरी हर इक धड़कन,
सब है तेरा बता मेरा क्या है।
ज़िन्दगी के सबक पढ़े हमने,
इससे बढ़कर के तजुर्बा क्या है।
सोचते बस यही है हम अक्सर,
वक़्त काटा है बस किया क्या है।
रोज़ जीना है रोज़ मरना भी,
ज़िन्दगी का ये फलसफ़ा क्या है।
पास होकर भी दूरियाँ इतनी,
ये मुहब्बत है तो सज़ा क्या है।
बेवज़ह यूँ न रश्मि उलझो तुम,
पहले समझो कि दायरा क्या है।
रश्मि ममगाईं
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तेरे बिन
तुझसे मिलना – तेरा होना,
काजल कोठरी नैनों में खोना,
मासूम सी छुवन,
हर लेती है मेरा मन,
जाने कैसा पागलपन,
सब समेट लेने को आतुर मन,
मन से मन का होता मिलन,
मेरे हाथों में तेरा हाथ,
हवा हो गया जैसे तन,
सिर्फ़ तू – सिर्फ़ तू,
मैं नहीं हूँ कहीं,
तुझ पर तन – मन अर्पण,
फिर वही ख़्वाब -वही स्वप्न,
व्याकुल जागते रोज नयन,
आह! मेरा कैसा जीवन?
कैसे जियूँ तेरे बिन?
कैसे जियूँ तेरे बिन?
कैसे….. जियूँ…. तेरे बिन?
रश्मि ममगाईं







