सुवीर कुमार त्रिपाठी
जनपद औरेया के ग्राम हैदर पुर में हुए एक कार्यक्रम में शिरकत करने आये मध्यप्रदेश के जनपद छतरपुर खैरो के प्रभारी पशु चिकित्सा धिकारी बी0 के0 अग्निहोत्री ने बढ़ती शिझि त बेरोजगारी पर चिंता जताते हुए कहा कि वर्तमान समय मे तमाम डिग्री धारी युवा बेरोजगारी से जूझ रहा है और नोकरी की चाह में दर दर भटक रहा है । जो देश के विकास में बाधक हैं । ब्रज की आवाज के रिपोटर से चर्चा करते हुए उन्होंने आगे कहा कि बकरी पालन करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है ।
i इस व्यवसाय में सर्वाधिक मुनाफा देने वाला धंधा है जिसमें सर्वाधिक कम लागत मेंअधिक लाभ कमाया जा सकता है । इस व्यवसाय हेतु सर्वप्रथम तो हमें यह तय करना होगा कि बकरी पालन में हमे मांस उत्पादन या दूध उत्पादन में से किसे चुनना है इस हिसाब से बकरी पालन है तो नस्ल का चयन करना चाहिए । हलाकि कुछ प्रजातियां दूध उत्पादन और मांस उत्पादन दोनों का औसतन दे सकती है मांस उत्पादन हेतु बुआर,सिरोही बीटल ब्लैक वंश और उस्मानी वादी नस्ल बेहतर मानी गयी है । दूध उत्पादन हेतु जमुनापारी बीटल सिरोही जखराना आदि बकरी की नस्ल उपयुक्त मानी जाती है ।कहीं यदि हम दूध उत्पादन में मांस उत्पादन दोनों की बात करें तो बर्बरी प्रजाति इसके लिए सर्वोत्तम हैं बकरी पालन के अधिकांश प्रजातियों में एक साथ दो बच्चे देने की क्षमता होती है इसलिए इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है इस कारण कम समय में इनका कुनबा बढ़ जाता है जिससे पशुपालन बहुत जल्दी ही अपने बकरी पालन को एक बड़े व्यवसाय का कम लागत में ही रूप दे सकता है लेकिन यह धंधा भी उतना ही जोखिम भरा भी हैं है। क्योंकि बकरी अधिकाश तया झुंड में रहती है ।इसलिए एक बकरी को छुआछूत बीमारी होने पर उसके पूरे झुंड में फैलने की संभावना बनी रहती है जिससे एक झटके में ही आपका लाखों का नुकसान हो सकता है ।
अतः समय-समय पर संक्रमांक रोगों के टीके लगवा कर किसी नुकसान से बचा जा सकता है।ड्रॉ अग्निहोत्री ने आगे बताते हुए कहा कि
भेड़ ,बकरियों में होने वाले मुख्य तीन प्रकार के संक्रामक रोग होते हैं । यदि इनका टीकाकरण समय पशुपालन विभाग द्वारा कराया जावे तो इस संक्रामक लोगों से होने वाले नुकसान को पूरी तरह से टाला जा सकता है
1 – et पोकनी रोग – इसे indro traksimiy रोव भी कहते हैं ।इसमे बकरियों का माल पतला होने लगता है और पशु बार-बार दस्त करने कमजोर हो गए डिहाइड्रेशन के कारण मर जाते हैं इसका टीकाकरण वर्ष में एक बार लगता है इसे लगवा लेने से वर्ष भर जानवर बीमारियों से मुक्त रहता है ।
2– ppr -इस रोग के लझन निमोनिया से मिलते-जुलते होते हैं नाक से बलगम को सांस लेने में तकलीफ इसके मुख्य लक्षण है धीरे-धीरे यह पूरी झुंड में फेल कर तबाही मचा सकता है इसका टीकाकरण वर्ष में एक बार लगवा कर इससे मुक्ति पाई जा सकती है।
3–एफएमडी — , यह रोग जान लेवा तो नहीं है किंतु पशु भी दुग्ध उत्पादन ,मसोत्पादन को कम कर देता है इस रोग में पशुओं के पैरों और मुंह में छाले हो जाते हैं जिस पर मुंह सड़ने लगते हैं इससे बचाव के लिए हर 6 माह में दूसरा टीका अवश्य लगवाये ।
यदि उक्त सावधानी बरती जाय तो कम लागत में अच्छा मुनाफा बकरी पालन व्यवसाय से हो कमाया जा सकता है।





