मैं एक ऐसे विषय पर अपने विचार रखने जा रहा हूँ जो हमारी सांस्कृतिक पहचान, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्र की एकता से जुड़ा हुआ है। यह विषय है, “भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने” का।
सबसे पहले, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हिंदू धर्म केवल एक धार्मिक विचारधारा नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है। “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः” जैसी भावना हमारे देश की आत्मा है। यह विचारधारा केवल हिंदुओं के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण की बात करती है।
भारत एक ऐसा देश है, जहाँ सैकड़ों भाषाएं, धर्म और संस्कृतियाँ एक साथ रहती हैं। हमारी विविधता हमारी ताकत है। लेकिन यह भी सच है कि इस विविधता को संभालने के लिए एक समान मूलभूत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हिंदू दर्शन, जो कि सहिष्णुता और समावेशिता का प्रतीक है, इसे स्थापित करने में सहायक हो सकता है।
जब हम “हिंदू राष्ट्र” की बात करते हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं कि किसी अन्य धर्म को दबाया जाएगा या उसके अधिकार छीने जाएंगे। इसका अर्थ है कि भारत अपनी संस्कृति और मूल्यों को प्राथमिकता देगा और उन्हीं सिद्धांतों पर आगे बढ़ेगा। यह राष्ट्र एक ऐसा होगा, जो अपने नागरिकों के बीच समानता, सम्मान और सहयोग को बढ़ावा देगा।
आज के समय में, जब पश्चिमी सभ्यता और उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे युवाओं को प्रभावित कर रही है, हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने की आवश्यकता है। हमारी सांस्कृतिक पहचान, हमारी परंपराएं, और हमारे धर्मग्रंथ हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाते हैं। यदि भारत हिंदू राष्ट्र बनता है, तो यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करेगा, बल्कि हमें वैश्विक स्तर पर भी एक अलग पहचान देगा।
यह सत्य है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं कि हम अपनी संस्कृति से दूर हो जाएं। इसका अर्थ है सभी धर्मों का सम्मान और उन्हें अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार जीने की स्वतंत्रता।
मैं यही कहना चाहूंगा कि “हिंदू राष्ट्र” का विचार केवल एक धार्मिक विचार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचार है। यह विचार हमारे देश को मजबूत, एकजुट और आत्मनिर्भर बनाएगा। इसलिए, हमें अपने जीवन में भारतीयता और हिंदू जीवन मूल्यों को अपनाने की आवश्यकता है।भारत एक प्राचीन सभ्यता है, जिसकी जड़ें वेदों, उपनिषदों और महान ग्रंथों में गहराई तक समाई हुई हैं। यह भूमि ऋषियों, मुनियों और महान विचारकों की रही है, जिन्होंने पूरे विश्व को शांति और सहिष्णुता का संदेश दिया।
आज जब पूरा विश्व पर्यावरण, शांति और सामाजिक समरसता की ओर देख रहा है, तो हिंदू जीवन दर्शन, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य और सह-अस्तित्व की बात करता है, एक आदर्श मार्गदर्शक हो सकता है।
भारत का धर्मनिरपेक्ष होना और हिंदू राष्ट्र का विचार एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं। हिंदू धर्म में हर विचारधारा का सम्मान किया गया है, चाहे वह किसी भी धर्म, संप्रदाय या मत की हो। यह एक ऐसा आधार हो सकता है, जिस पर सभी धर्म फल-फूल सकें।
आइए, हम सब मिलकर अपने देश की महान विरासत को समझें, अपनी जड़ों को पहचानें, और एक ऐसा भारत बनाएं जो न केवल अपने नागरिकों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बने।
–मनोज कुमार शर्मा