ये चाँद और ये तारे कहाँ समझते हैं,
जवां दिलों के इशारे कहाँ समझते हैं।
ये दोस्ती तो अमानत है ज़िन्दगी भर की,
भला ये यार हमारे कहाँ समझते हैं।
किसी तलाश में रहती है ये नदी हरपल,
नदी की प्यास किनारे कहाँ समझते हैं।
ज़रा बता दे उन्हें कोई है मुहब्बत, वो ,
अभी हैं स्वप्न कुँवारे, कहाँ समझते हैं।
हिदायतें या सबक जो भी अब ज़माना दे,
भला ये इश्क़ के मारे कहाँ समझते हैं।
रश्मि ममगाईं🌹
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तुम इसे दिल पर लगाओ, बात ऐसी तो नहीं थी,
कुछ कहे बिन दूर जाओ, बात ऐसी तो नहीं थी,
प्रेम है तो प्रेम में, परिहास की भी मान्यता है,
मानकर सच रूठ जाओ, बात ऐसी तो नहीं थी
रश्मि ममगाईं🌹
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ज़ुबाँ पर और क्या है बस सदा गुणगान हैं उसके,
मुख़ालिफ़ हो नहीं सकते यही फरमान हैं उसके,
नहीं कुछ भी कहा उसने मगर ये जानते हैं हम,
हमारे सर झुके हों बस यही अरमान हैं उसके।
रश्मि ममगाईं🌹
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थोड़ी या फिर सारी से क्या,
हमको दुनियादारी से क्या।
पूर्ण न अब तक जो हो पाए,
वादे हैं सरकारी से क्या।
युद्ध लड़ोगे क्या तुम बोलो,
बेकारी-लाचारी से क्या।
जो तुमने झेली है बरसों,
हमको उस दुश्वारी से क्या।
आग लगी है मन में तेरे,
नफ़रत की चिंगारी से क्या।
जुड़ना तो मन का होता है,
केवल रिश्तेदारी से क्या।
रश्मि निकालें भूली-बिसरी,
यादें फिर अलमारी से क्या।
रश्मि ममगाईं🌹
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कौन है मेरा जहाँ में एक गिरधर के सिवा,
चित्त मैं किस पर लगाऊँ उस मनोहर के सिवा।
नेह की गागर उठाए आ रही हूँ दूर से,
ये नदी जाए कहाँ अब और सागर के सिवा।
है तुम्हीं से साज सज्जा और ये शृंगार भी,
बिन तुम्हारे देह है क्या सिर्फ़ खँडहर के सिवा।
ये नज़र जाए जहाँ तक हर जगह है बस वही,
और कुछ दिखता नहीं है श्याम सुन्दर के सिवा।
इस प्रतीक्षा में निशा भी भोर तक बैठी रही,
रश्मि’याँ ले कौन आए और दिनकर के सिवा।
रश्मि ममगाईं🌹






