आज हम यहां एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे हैं बिषय है— “जातिवाद से ऊपर उठकर हिंदुओं की एकता।”
हमारे समाज में जातिवाद की समस्या कोई नई नहीं है। यह सदियों से हमारी संस्कृति और समाज को विभाजित करती आई है। लेकिन आज, यह जरूरी है कि हम आत्मचिंतन करें और यह समझें कि यह विभाजन न केवल हमें कमजोर करता है, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारी समृद्ध विरासत को भी खतरे में डालता है।
भारत में जाति प्रथा का आरंभ कर्म और गुण के आधार पर हुआ था। लेकिन समय के साथ, यह विभाजन का कारण बन गई। जातिवाद ने भाईचारे की भावना को खत्म कर दिया और समाज में ऊँच-नीच का भाव पैदा कर दिया। हमें यह समझना होगा कि हम सब एक ही संस्कृति, एक ही इतिहास, और एक ही धर्म से जुड़े हुए हैं।
आज हमारा समाज कई बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। बाहरी ताकतें हमारी संस्कृति और परंपराओं को मिटाने की कोशिश कर रही हैं। अगर हम आपस में बंटे रहेंगे, तो हम इन चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे?
हमारी पवित्र पुस्तकों—गीता, वेद, और पुराणों—ने हमेशा एकता और समानता का संदेश दिया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “सब प्राणी मेरे ही अंश हैं।” जब भगवान की दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं है, तो हम क्यों भेदभाव करें?
हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि जातिवाद समाज के लिए जहर है। उन्हें यह बताना होगा कि हर व्यक्ति अपने गुण और कर्म से महान होता है।
सभी जातियों के लोग मिलकर सामाजिक और धार्मिक कार्य करें। यह आपसी समझ और सहयोग को बढ़ावा देगा।
धर्म का असली उद्देश्य प्रेम, करुणा, और मानवता का पालन करना है। धर्म को जातियों में बांटकर हम इसके मूल उद्देश्य को भूल जाते हैं।
हर वर्ग को समान अवसर देना जरूरी है ताकि कोई भी व्यक्ति खुद को अलग-थलग महसूस न करे।
भाइयों और बहनों, यह 21वीं सदी है। यह समय पुरानी रुढ़ियों को छोड़कर एक नई शुरुआत करने का है। अगर हम जातिवाद के दायरे से बाहर निकलकर एकजुट हो जाएंगे, तो कोई ताकत हमें हरा नहीं सकेगी।
आइए, हम सभी मिलकर यह प्रण लें कि जाति, पंथ, और भाषा के बंधनों को तोड़कर एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जहां समानता, एकता, और भाईचारा होगा। याद रखें, “वसुधैव कुटुंबकम्” का मंत्र तभी सार्थक होगा, जब हम आपस में एक होंगे। जय हिंद जय भारत!
—-मनोज कुमार शर्मा