सुवीर कुमार त्रिपाठी
औरेया सुखी पारिवारिक जीवन विताने के लिये तुलसी की पूजा करना वैदिक संस्कृति में अहम योगदान है ।
जनपद के गावं में मातायें तुलसी का विवाह प्रत्येक विवाह की तरह धूम धाम से मनाती है इसका कारण यह है कि भगवान ने तुलसी कों अपनी पत्नी होने का वरदान दिया था आचार्य पं० रामवावू दिवेदी मयंक जी ने शास्त्रों के अनुसार इसका महत्व वताते हुए कहा कि पुरातन काल में तुलसी दिव्य पुरूष संखचूर्ण की निष्ठावान पत्नी व्रंन्दा थी भगवान विष्णु ने छल सें उसका सतित्व भंग किया था तव व्रंन्दा नें भगवान को पत्थर वन जाने का श्राप दे दिया इस रह भगवान सालिगराम के रूप में परिवर्तित हो गये अौर व्रंन्दाकी भक्ति और सदाचारिता की लगन को देखकर उसें वरदान देकर पूज्नीय पौधा तुलसी वना दिया और कहा कि वह सदा भगवान के मष्तिष्क की शोभा वनेगी इसीलिये तुलसी के पत्तों के विना प्रत्येक चढावा अधूरा रहता है इस लिये हिन्दू समाज में घर के आंगन में एक तुलसी का पौधा लगाते है ग्रह स्वामी दीप जलाते है जल चढाते है पूजा करते है






