जनता महाविद्यालय में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में छलका ओज, श्रृंगार और व्यंग्य का संगम
जिला ब्यूरो चीफ अनिल अवस्थी
औरैया। जनता महाविद्यालय का प्रांगण सोमवार की संध्या साहित्य, संगीत और भावनाओं की सरिता में स्नान करता दिखाई दिया, जब माँ सरस्वती के पूजन और दीप प्रज्ज्वलन के साथ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। यह आयोजन जनपद में साहित्यिक चेतना का पर्व बन गया।कार्यक्रम का शुभारंभ आगरा से आई प्रसिद्ध कवयित्री योगिता चौहान की सरस्वती वंदना “वीणा धारी जय मात शारदे” से हुआ, जिसने श्रद्धा और सुर की अनूठी लय बिखेरी। इसके बाद कवयित्री रचना त्रिपाठी ने समाज की विषमताओं पर तीखा प्रहार करते हुए कहा-“जातियों का ज़हर बो दिया, भाई ने भाई को खो दिया।” उनकी भावनात्मक अभिव्यक्ति ने सभागार को आत्ममंथन की ओर प्रवाहित कर दिया।
डॉ. राजीव राज की दार्शनिक रचना “सिर्फ इक फूल के मानिन्द ज़िंदगानी है…” ने जीवन की क्षणभंगुरता का गहरा बोध कराया, जबकि सतीश मधुप की ओजस्वी वाणी “केसरिया पावक सा पावन अग्नि नहीं फुकने देना…” पर सभागार “भारत माता की जय” के नारों से गूंज उठा। युवा ओज कवि रोहित चौधरी ने प्रखर शब्दों में कहा-“धरती का कण-कण बोले अब भारत माँ की जय।” उनकी रचना में ओज और देशभक्ति का अद्भुत संचार था। वहीं गीता चतुर्वेदी की श्रृंगारिक कविता “एक पल को भी पलकें झुकानी नहीं…” ने वातावरण को कोमलता और माधुर्य से भर दिया।
हास्य कवि दीपक शुक्ला ‘दनादन’ ने चुटीले व्यंग्य से ठहाके बटोरे, तो सबरस मुरसानी ने ऊर्जावान काव्य “ऊँचा है हिन्द गगन से…” से सम्मेलन को चरम पर पहुँचा दिया। कार्यक्रम के समापन पर पुनः योगिता चौहान की श्रृंगारिक रचना “अब निभाएँ नहीं वो तो मैं क्या करूं…” ने भावनाओं की मधुर छाप छोड़ दी। इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) अरविन्द कुमार शर्मा, प्राचार्य जनता महाविद्यालय, डॉ. ध्रुव दत्त, राजीव चौहान, गौरव कुमार, डॉ. श्रीप्रकाश यादव, डॉ. योगेश शाहू सहित समस्त शिक्षण स्टाफ, कर्मचारीगण एवं क्षेत्र के अनेक साहित्यप्रेमी जन उपस्थित रहे।अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने अजीतमल की धरती को शब्दों के अमृत से सींच दिया-जहाँ हर पंक्ति ने दीपक बनकर सरस्वती का दरबार आलोकित किया।





