

श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन भक्ति, धर्म और सदाचार का हुआ अद्भुत संगम
वाराणसी(सीपी सिकरवार/शिवशंकर शर्मा)। शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर मार्ग के समीप स्थित काशी आनंदम स्पिरिचुअल एंड वेलनेस वैदिक विलेज में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन का आयोजन भक्ति और भावनाओं से ओतप्रोत रहा। कथा के दौरान श्रद्धालु श्रोतागण बार-बार “हरि बोल” के जयघोष से वातावरण को गूंजायमान करते रहे। यह दिव्य कथा कोलकाता के प्रतिष्ठित उद्योगपति श्रीमती ज्योति विजय खेमका एवं श्रीमती जया खेमका द्वारा अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में आयोजित की जा रही है। कथा का वाचन इस्कॉन कोलकाता के प्रसिद्ध कथा वाचक एच. जी. सार्वभौम प्रभु कर रहे हैं, जिनकी रसपूर्ण वाणी और गूढ़ व्याख्या ने श्रद्धालुओं को भक्ति में डुबो दिया।
दक्ष प्रजापति यज्ञ, सती का त्याग और अनसूइया की पवित्रता का वर्णन किया। अपने आज के प्रवचन में सार्वभौम प्रभुजी ने श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंध की कथा सुनाते हुए दक्ष प्रजापति के यज्ञ में बिना बुलाए सती के जाने और उनके अपमान का मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया।
उन्होंने आगे अत्रि ऋषि और माता अनसूया की पवित्र कथा सुनाई, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश बालक रूप में माता के आंचल में पले। प्रभुजी ने दुर्वासा ऋषि के वृंदावन आगमन तथा राधारानी के हाथों से मिट्टी के लड्डू खाने की हृदयस्पर्शी कथा सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। साथ ही उन्होंने एकादश स्कंध के राजा प्रथु के अवतार का उल्लेख करते हुए बताया कि वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना का श्रेय प्रथु महाराज को ही जाता है।
अपने उपदेश में प्रभुजी ने कहा — “भक्ति का जन्म भक्त के साथ होता है। भक्ति तो हर कोई कर सकता है, परंतु सच्चे भक्त का दर्शन अत्यंत दुर्लभ होता है। धर्म करो, यज्ञ करो, पर किसी साधु-संत या भक्त का अपमान कभी नहीं करना चाहिए।” उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन को धर्म, ज्ञान और वैराग्य के पथ पर अग्रसर करने वाली दिव्य दिशा है। कथा के समापन पर खेमका परिवार ने अपने परिजनों और देशभर से आए मित्रों के साथ श्रीमद्भागवत महाग्रंथ का पूजन किया और सार्वभौम प्रभुजी से आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रद्धा, संगीत और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा यह आयोजन पूरे परिसर में भक्ति का अनूठा वातावरण निर्मित कर रहा है।






