ताक़त यह नहीं कि तुम किसी को झुका दो
बल्कि यह कि तुम किसी को उठने दो
कमज़ोर वही होता है
जो दूसरों की आज़ादी से डरता है
जब स्त्री आज़ाद होती है
पुरुष भी मुक्त होता है पितृसत्ता के बोझ से
अपने डर से अहंकार से
एक फेमिनिस्ट पुरुष जानता है
स्त्रीवाद सिर्फ़ औरतों का नहीं
समानता का आंदोलन है
वह चलता रहता है सड़क पर, घर में, संसद में
हर जगह स्त्रीवादी होने की क़ीमत चुकाते हुए
वह समझता है समानता कोई उपकार नहीं
और आज़ादी बाँटने से घटती नहीं
बल्कि बढ़ती है।
– शोभा अक्षर






