जनपद मुख्यालय स्थित भारतीय जनता पार्टी के जिला कार्यालय में इन दिनों एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है — आखिर पार्टी के पुरोधा और मार्गदर्शक रहे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की तस्वीरें कहां गायब हो गईं? जिला पार्टी कार्यालय के विजिटिंग रूम और बाहरी होल्डिंग्स में अटल-आडवाणी की तस्वीरों का न होना पार्टी कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपा की पहचान और उसके संघर्षपूर्ण इतिहास में अटल-आडवाणी की भूमिका किसी परिचय की मोहताज नहीं रही, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपाई सत्ता के नशे में अपने ही प्रेरणास्रोतों को भुला बैठे हैं। स्थानीय नागरिकों और पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि “भाजपा को सींचने वाले नेताओं को ही अब भुला दिया गया है।” कभी राम जन्मभूमि आंदोलन को नई दिशा देने वाले और देश के प्रथम भाजपा गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी अब पार्टी की होल्डिंग्स और कमरों से नदारद हैं। वहीं, भाजपा के करिश्माई नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जिनकी छवि जन-जन में पार्टी की रीढ़ रही, उनकी तस्वीरें भी कहीं दिखाई नहीं देतीं। कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि “पार्टी के ये वही नेता हैं जिनके संघर्षों की बदौलत भाजपा आज सत्ता के शिखर पर पहुंची है, पर आज के भाजपाई उन्हीं को भूलते जा रहे हैं।” वहीं इस विवाद पर भाजपा जिला अध्यक्ष सर्वेश कठेरिया ने सफाई देते हुए कहा,
“यह आवश्यक नहीं कि विजिटिंग रूम में केवल अटल-आडवाणी जी की ही तस्वीरें लगाई जाएं। पार्टी में सभी नेता सम्माननीय हैं और समय-समय पर नई तस्वीरें बदली जाती हैं।”
उनके इस बयान से हालांकि असंतोष की लहर थमने का नाम नहीं ले रही। कार्यकर्ताओं का मानना है कि अटल-आडवाणी की छवि पार्टी की पहचान और वैचारिक नींव का प्रतीक है, और उन्हें भुलाना पार्टी की विचारधारा से दूरी का संकेत है। अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा जिला इकाई अपने इन “भूले हुए नायकों” को फिर से सम्मान की जगह दे पाएगी, या सत्ता के इस नशे में यह परंपरा भी इतिहास बन जाएगी।






